आज घर में चारों तरफ़ सन्नाटा पसरा पड़ा था. ऐसा लग रहा था जैसे ये घर किसी की मौत पे मातम मना रहा हो. पापा ऑफिस जा चुके थे और माँ अपने बेड पे औंधे मुंह लेटी सुबक रही थी. उनके आंसुओं की बाढ़ से तकिया आधी भींग चुकी थी. पुन्नी स्कूल जा चुका था और दादाजी…वो भी अपने रुम में आंसू बहा रहे थे. बहुत देर तक मैं लिविंग रुम में खड़ा रहा. समझ ही नही आया कि किसके पास जाऊं और क्या समझाऊं.
मैं तो खुद ही हैरान परेशान था. दादाजी के उस एक फ़ैसले ने हम सब की जिंदगी में तूफ़ान ला कर खड़ा कर दिया था. आज डैड कितना चिल्लायें थे और माँ…वो तो सीधा बरस ही पड़ी थी. ” आप का दिमाग तो खराब तो नही हो गया हैं पापाजी! कमसे कम अपनी उम्र का तो लिहाज किया होता.पूजा पाठ और तीर्थयात्रा करने की उम्र में आपको शादी करने की क्या सूझ गई. लोग क्या कहेंगे? नाती पोतों की शादी की जगह आप अपनी शादी के सपने देख रहे हैं. आप को जरा भी शर्म नही आयी..!”
दादाजी किसी मुजरिम की तरह आँखें नीचे झुकाये चुपचाप आँसू बहा रहे थे.
” बुढ़ापे में जवानी फूंट रही हैं. लोग समाज मेरे मायके वाले रिश्तेदार बच्चों के दोस्त ये सब क्या सोचेंगे हमारे बारें में. इन्हें तो बस हमारी बेज्जती करवा के रहनी हैं. इनकी ऐसी हरकते चलती रही ना तो हमें किसी को मुंह दिखाने लायक नही छोड़ेंगे!” माँ लगातार बडबड किये जा रही थी.
मुझे भी दादाजी पे बहुत गुस्सा आ रहा था. ” इस उम्र में वो भी शादी! छीछिछी..!”
मुझे वहाँ रुकना ठीक नही लगा और पैर पटकता हुआ निकल गया बाइक ले के दोस्त के घर. जब डैड छोटे थे तब ही दादी गुजर गई. सौतेली माँ के अत्याचार के डर से उन्होंने कभी शादी नही की. अकेले ही डैड की परवरिश की और माँ बाप का प्यार दिया. उनके इस त्याग का हम सब सम्मान करते थे. पूरी फॅमिली उनका पूरा ध्यान रखती. इतना करने के बाद भी हम उनके इस खालीपन को नही भर सके थे.शायद..हम ही उनके अंदर के उस सूनेपन को नही देख पाये थे और हमारे पास वक़्त ही कहा था उनको देने के लिए. हम अक्सर चीजों और पैसों से खुशियाँ भरने की कोशिश करते हैं और हम ये भूल जाते हैं कि मन की शांति, आत्मा का सुकून और अपनों के साथ बिताया हुआ अच्छा पल चीजों से नही भरा जा सकता. दादाजी डेली मॉर्निंग वाक पे जाते और घर आ के बरांडे पे बैठ के न्यूज़ पेपर चाय की चुस्कियों के साथ पढ़ते.
ये उनका डेली का काम था लेकिन पिछले एक महीने से वाक से लेट आने लगे थे और खुश भी लगते. उनकी इस नई आदत से हम सब हैरान थे और खुश भी. लेकिन जल्दी ही उनकी इस आदत और ख़ुशी का राज खुल गया. वो जिस गार्डन में वाक पे जाते थे वहां उनकी दोस्ती किसी रमा नाम की औरत से हो गई. उनके पति का स्वर्गवास हो चुका था और बच्चें विदेश में सेटल हो चुके थे. अकेली अपने फ्लैट में रहती थी और एक पर्मानेंट नौकरानी देखभाल के लिए रख रखी थी. उस एक घंटे के वक़्त में दोनों अपना अकेलापन बाँटते और सूनापन दूर करने का प्रयास करते. बेजान पड़ी दो जिन्दगियां फिरसे जी उठी थी. आखिरी मोड़ पे साथ जीने के अरमान एक बार फिर बलवती हुई और फिर क्या था दोनों ने शादी जैसा बड़ा फ़ैसला ले लिया. रमा के घर में भी कोहराम मचा हुआ था. जैसे ही ये खबर बच्चों को मिली, फ़ौरन इंडिया आ गए.
” माँ! तुम्हारा दिमाग़ तो नही खराब हो गया हैं. क्या बेहूदा हरकते कर रही हो. सब हमारा मज़ाक उड़ायेंगे. लेकिन तुम्हे उससे क्या! तुम्हे तो उस बुड्ढे के साथ मजे करने की पड़ी हैं. हमने तुम्हारा ख़याल रखने में क्या कमी छोड़ी जो तुम ये सब करने में आमदा हो !” बच्चों के ज़िल्लत भरे शब्दों को ज्यादा देर तक बर्दास्त ना कर सकी और वहा से उठकर अपने रुम में चली गई और दरवाज़ा अंदर से बंद कर घंटों आँसू बहाती रही.
***
अब कुछ भी सामान्य नही रह गया था. हर वक़्त तनाव वाला माहौल और मनहूसियत ने तो जैसे ना जाने की कसम खाई हो. अब तो घर पे कोई भी दादाजी से ठीक से बात नही करता. सब उनसे कटने लगे थे. यहा तक कि मैं भी और वो अपराधबोध से भरे हुए अपने रुम में दादी की तस्वीर के सामने फफ़क फफ़क के ख़ूब रोते. अब तो उन्होंने वाक पे ही जाना छोड़ दिया था. मुर्झाये हुए पत्तों की तरह बेड में पड़े रहते और घंटों शून्य में ताक़ते रहते. मैं उनसे नही बल्कि उनके उस फ़ैसले नाराज़ था. उनकी ये तकलीफ़ मेरे बर्दाश्त से बाहर हो चुकी थी. आख़िर वो कब तक ऐसे घुटते रहते.
मैंने भी मन ही मन एक संकल्प लिया…दादाजी को इस घुटन से मुक्ति दिलवाने का और उनकी खोई खुशियाँ उनको वापस लौटने का. दो दिनों तक सोचता ही रहा ऐसा क्या करु कि जिससे बिगड़े हुए हालात सुधर जाय और सब मान भी जाये. परेशान सा इधर उधर घूमता रहा. अचानक मेरे दिमाग में एक आईडिया आया और फटाफट एक पूरा प्लान बना डाला. बस उस प्लान को अब अमलीजामा पहनाना बाकी था.
सबसे पहले मैंने रमा के घर का पता मालूम किया. उसके बाद लग गया अपने प्लान के सेकंड फेज को सफ़ल बनाने में. मैंने पता लगा लिया था कि उनके बच्चें अभी वापस नही गए हैं और नॉएडा वाला फ्लैट बेच के उनको भी साथ ले जाने का प्रोग्राम बना रहे हैं. मेरे पास वक़्त बहुत कम था और शायद यही सही वक़्त भी था एक्शन लेने का. मैंने अपने दोस्त की एक झूटी बर्थडे पार्टी प्लान की और सबको रेडी होने के लिए बोला. बड़ी मुश्किल से सब जाने को तैयार हुए. हम सब गाड़ी में सवार हुए और निकल पड़े रमा के घर. दादाजी 2-3 बार रमा को उसकी बिल्डिंग तक छोड़ने आ चुके थे इसलिए जानी पहचानी जगह देख चौंक गए. वो कुछ बोलते उससे पहले ही मैंने आँखों के इशारे से उनको चुप रहने को बोला. वो हैरानी से मुझे देख रहे थे. मैंने उन्हें इशारों से आश्वस्त करने का प्रयास किया.
तभी डैड बोले, ” सुलभ! ये कैसी बर्थडे पार्टी हैं? ना गेस्ट आते जाते दिखाई दे रहे हैं, ना कोई शोर सराबा और ना म्यूजिक की तेज आवाज़ ही आ रही हैं!”
“अरे..डैड! ऊपर तो चलिये. हो सकता हैं सारे गेस्ट पहले से ही आ चुके हो!” हम सब रमा के घर के बाहर खड़े थे. मैंने बेल बजाई तो उनके बड़े बेटे यश ने गेट खोला.
” जी बोलिए! आपको किससे मिलना हैं?”
मैंने बोला, “जी! रमा आंटी से मिलने आए हैं. वो घर पे नही हैं क्या?”
” हैं न घर पे. माँ ! देखो कोई मिलने आया हैं तुमसे..!” यश अंकल ने अपनी माँ को आवाज़ दी और हमें अंदर आने का इशारा किया.
डैड मुझे अब भी सवालिया नज़रों से घूर रहे थे और अचानक चिल्ला के बोले, “सुलभ! ये क्या बेहूदा मज़ाक हैं! यहाँ सबको झूंट बोल के लाये हो ! देखो सुलभ! मुझे इस विषय में कोई बात नही करनी हैं समझे ! अब चलो घर वापस!”
” नही डैड! आज बिना सबकुछ फाइनल किये वापस नही जाऊंगा. ये मेरे दादाजी का सवाल हैं और आप के बाबूजी की खुशियों का डैड!”
तभी यश अंकल हमारी तरफ बढ़े, ” ओ हेलो! ये सब चल क्या रहा हैं यहाँ पे? क्यों माँ ! यही वो बुड्ढा हैं न जिसके पीछे तुम पगलाई हुई हो!”
रमा आँखें नीचे किये बुत बनी मौन खड़ी थी. अचानक डैड और यश अंकल दोनों के बीच दोषारोपण का दौर चल पड़ा. इतनी गहमा गहमी के बीच मैं चिल्ला पड़ा और एकाएक सन्नाटा हो गया, ” बस करिये आप लोग आपस में झगड़ना! आज इन दोनों ने अपने हिस्से की थोड़ी सी ख़ुशी चाही तो आप लोगों को इतनी तकलीफ़ क्यों हो रही है? दोनों अगर साथ रहना चाहते हैं तो इसमें बुरा क्या हैं? प्यार करना कोई पाप तो नही! हर उम्र में प्यार के अपने मायने होते हैं. कभी ये सोचा हैं कि इन दोनों ने अपनी कितनी सारी खुशियाँ कुर्बान कर दी होंगी और न जाने कितनी इच्छाओं का गला घोंट दिया होगा हम सब की इच्छाओं और सपनों कों पूरा करने में. तब इन्होने अपने और समाज के बारे में नही सोचा तो हम सब क्यों इतना सोच रहे हैं?” मैं धाराप्रवाह बोले जा रहा था.
माँ और डैड ने भी लगभग मौन स्वीकृति दे ही दी थी लेकिन यश अंकल भड़क गए. ” देखो मिस्टर! हमने भी अपनी माँ की जिम्मेदारी उठाने में कोई कसर नही छोड़ी है. जो भी हो पर ये शादी हरगिज नही हो सकती. अगर आप की स्पीच ख़त्म हो गई हो तो आप लोग यहाँ से जा सकते हैं. आइंदा हमें दुबारा परेशान करने की कोशिश मत कीजिएगा वरना मजबूरन पुलिस को फ़ोन करना पड़ेगा.”
मेरा प्लान लगभग फ़ेल हो चुका था और दादाजी…वो अब भी गेट के पास चुपचाप उस बच्चे की तरह खड़े थे जिसके हठ को ठुकरा दिया गया था. मैं मायूस हो चुका था. हम सब वहा से जाने लगे और तभी ” रुको हरदयाल! ”
हम सब चौंक के पीछे घूमे. शायद…कोई चमत्कार हुआ था. रमा दादाजी के पास आ के रुकी. ” हरदयाल! मेरे बिना ही चले जाओगे…!”
दादाजी नम हो चुकी आँखों से एक टक देख रहे थे कि ” माँ ! पागल हो गई हो क्या? क्या बक रही हो. जाओ अपने रुम में. इन्हें तो मैं देख लूँगा..!” यश अंकल ने रमा का हाथ अपनी तरफ खींचते हुए बोला.
रमा ने उनको गुस्से में घूर के देखा और अपना हाथ छुड़ा के बोली, ” हरदयाल! चलो यहा से..!”
यश अंकल चिघाड़े. ” रुक जाओ माँ ! अगर तुम आज यहाँ से चली गयी तो अच्छा नही होगा. हम भूल जायेंगे कि तुम हमारी माँ हो और हमेशा के लिए तुमसे हमारा रिश्ता ख़त्म हो जायेगा..!”
अंकल का छोड़ा वो सगूफा फुस्स हो गया और रमा हमारे साथ हमारे घर आ गई. हमने उन दोनों की कोर्ट मैरिज करवाई और घर में उनका स्वागत एक नई नवेली दुल्हन की तरह किया गया. ” वेलकम टू होम दादी !”
उन दोनों की आँखें ख़ुशी से चमक रही थी. उन्हें देख के लगा कि ‘वाकई ! प्यार उम्र का मोहताज नही होता. बस..हो जाता हैं…!’
रमा…मेरी लिए अब खाली रमा नही रह गई थी..मेरी दादी थी. नई दादी और दादाजी की नई हमसफ़र…!